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आज से 600 वर्ष पूर्व की बात है काशी शहर में रामा आनंद ने पंडित को बुलाया था, उनकी प्राथमिकता गोरखनाथ जी को अच्छी नहीं लगी और वह अन्य रूप में स्वामी जी से ज्ञान चर्चा करने आए थे और स्वामी जी को चिंता हुई थी कि गोरखनाथ स्वामी जी को हरवा कर दिया गया था उनके कंठी माला चिंकार वैष्णव लोगों को नाथ न बना दे उनकी यह चिंता कबीर जी को देखकर नहीं लगी और उन्होंने गुरुदेव भगवान को बोला आप क्यों चिंतित हैं रामानंद जी ने कबीर जी को सारी बात बताई कबीर देव जी को बात देर तक नहीं लगी और बोले गुरुदेव जी आप निश्चिंत रहिए कबीर 5 वर्ष के बालक गोरखनाथ जी से बोले हैं कि गोरखनाथ आप सबसे पहले अपने शिष्य कबीर से ज्ञान चर्चा करके देखें यदि चेला ही विद्वान होगा तो गुरु कैसा होगा गोरखनाथ जी कबीर को कहते हैं कि बालक सा बालक बड़ी बात है तेरे साथ ज्ञान चर्चा कैसे कर सकता हूं तू तो उसे एक छोटा सा बच्चा है कबीर साहब बोले कि मैं बच्चा नहीं हूं जब यह पृथ्वी रची है तब से मैं यहकंठी धारण धारण करता हूं टोपी पहनता हूं तिलक लगाता हूं और मेरी उम्र तो बहुत है मेरी अभी भी पलक नहीं झकी है और अनंत करोड़ विष्णु मेरी आंखों के सामने मर गए कई करोड़ शंभू गए मर और अभी मेरी पलक भी नहीं लगी है मैं वेश्या का ज्ञान ही रहता है मैं सनातनी भगवान हूं मेरा नाम कबीर है सतलोक से आया हूं मेरे का कोई बार-बार नहीं है ये बातें सुनीं गोरखनाथ की आग बबूला हो गईं लेकिन गोरखनाथ जी समझ गए थे कि ये तो कोई विद्वान बच्चा है गोरखनाथ जी सिद्धि के बल पर बात करते थे जबकि कबीर साहेब सिद्धि के पर ज्ञान आधारित बात करते थे सिद्धि से मोक्ष नहीं होता क्योंकि ज्ञान और भक्ति से ही मोक्ष बल होता है गोरखनाथ जी अपनी सिद्धि से त्रिशूल के ऊपर जाते हैं और कहते हैं कबीर अगर ज्ञान चर्चा करते हैं तो मेरे सातों में करो अन्य हार मान कबीर कहते हैं कि स्वामी जी ज्ञान चर्चा में त्रिशूल के ऊपर बैठे पाखंडवा न करें आओ जमीन पर बैठे हैं औरभगवान की चर्चा करते हुए कहा गया है कि विश्व का कल्याण होगा लेकिन गोरखनाथ कबीर की एक भी नहीं सुनता है फिर कभी अपनी जेब में रखा एक धागा आकाश को पीटता है और वह धुरा सिद्ध हो जाता है साहेब कबीर वह साधक पर रहते हैं पूर्ण भगवान की गोरखनाथ की जादुई शक्ति के आगे नहीं कर पाई काम

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