kabir jivani

कबीर साहेब की जीवनी में उनकेे जन्म अगर हम बात करें तो बहुत सारे लोगों केे अलग अलग मत है। कुछ तो यू कहते हैंं कि कबीर साहिब जी विधवा केे पुत्र थे, जिसने लोक लाज के कारण लहरतारा तालाब में छोड़ दिया था। जहां पर नीरू नामक मुसलमान को मिले। लेकिन अगर हम धनी धर्मदास जी द्वारा लिखित कबीर सागर को अगर पढ़े तो बात कुछ अलग ही है, और हम इसी बात को सही मानेंगे क्योंकि यह प्रमाणित भी है।
कबीर सागर के अनुसार और अन्य धर्म ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब आदि के अनुसार कबीर साहेब काशी में लहरतारा तालाब के अंदर कमल के फूल पर प्रकट हुए थे। जिनके प्रत्यक्ष गवाह रामानंद जी के शिष्य अष्टानंद जी थे।कबीर साहेब या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी।उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।

पुख्ता प्रमाण के अनुसार कबीर साहेब का कमल के फूल पर आगमन विक्रमी संवत 1455 सन 1398 में ब्रह्म मुहूर्त में आए। उस समय नीरू नीमा नामक मुसलमान दंपति जोकि पूर्व में हिंदू थे वहां पर नहाने के लिए आए हुए थे तथा उनको पूर्व में कोई संतान भी नहीं थी। फूल पर विराजमान कबीर साहिब जी को नीरू नीमा अपने साथ लेकर गए। वही 25 दिन तक उस छोटे से बच्चे ने किसी भी प्रकार का कोई आहार नहीं किया। जब काशी वालों ने प्रथम बार उस बच्चे को देखा तो हर कोई अचंभित हो रहा था क्योंकि वह बच्चा इतना खूबसूरत था कि हर कोई उसे अवतार का रूप कह रहा था।

 

कबीर साहेब (कबीरदास) का जीवन परिचय
कबीर साहेब की जीवनी_ _ कबीर जी मिथक को दूर करने के लिए काशी से मगहर आए थे कि सच्चा उपासक मर सकता है कहीं भी वह भगवान को पा लेगा ।__ काशी के पंडितों ने एक मिथक फैला दिया था कि अगर मगहर में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसे गधे का अगला जन्म मिलेगा और अगर काशी में उसकी मृत्यु हो जाती है, तो वह स्वर्ग को प्राप्त करेगा। _ _ कबीर जी मिथक को दूर करने के लिए काशी से मगहर आए थे कि सच्चा उपासक मर सकता है कहीं भी वह भगवान को पा लेगा ।_कबीर जी ने उन्हें सख्ती से कहा कि वे उनके शरीर के लिए संघर्ष न करें, बल्कि शांति से रहें। कबीर साहब ने खुद को एक और चादर से ढँक लिया। कुछ समय बाद, कबीर जी ने आकाशवाणी की कि वह सतलोक जा रहे हैं जहाँ से वह आए हैं। कबीर जी के मृत शरीर को चादर के नीचे नहीं पाया गया था, इसके बजाय केवल सुगंधित फूल पाए गए थे। कबीर साहिब ने हिंदुओं और मुसलमानों को सद्भाव के साथ रहने का आदेश दिया। हिंदू और मुस्लिम दोनों ने आपस में फूल बांटे और स्मारक बनाया जो आज भी काशी में है ।
 _ कबीर जी के सभी हिन्दू और मुस्लिम शिष्य एकत्रित हुए। मुस्लिम शासक बिजली खान पठान और हिंदू राजा वीर सिंह बघेल भी स्वामी कबीर के पार्थिव शरीर को प्राप्त करने और उनके धार्मिक तरीके के अनुसार अपने गुरु का अंतिम संस्कार करने के लिए वहां मौजूद थे।
 _ कबीर जी के सभी हिन्दू और मुस्लिम शिष्य एकत्रित हुए। मुस्लिम शासक बिजली खान पठान और हिंदू राजा वीर सिंह बघेल भी स्वामी कबीर के पार्थिव शरीर को प्राप्त करने और उनके धार्मिक तरीके के अनुसार अपने गुरु का अंतिम संस्कार करने के लिए वहां मौजूद थे 

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